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हमारी पसन्द
कह दिया तूने मुझे दुश्मने जानी कैसे मर गया आज तेरी आँख का पानी कैसे - ख्वाजा जावेद अख्तरवक्त मुनसिफ़ है ज़रा करवट तो लेने दीजिएदूध का दूध और फिर पानी का पानी देखना - मज़हर महीउद्दीनयही तो वस्फ़ है मेरा, अगर मैं मर भी गयाजुड़ी रहेगी कोई दास्तान मेरे बाद - ख़र्शीद तलबदुनिया की आदत है इसमें हैरत क्याकाँच के घर पर पत्थर मारा जाता है - आलम ख़ुर्शीदहै सद्र की इक एक गज़ल जाने फ़साहतलगता है के इस शख़्स ने क़ुरआन पढ़ा है - इदरीस सद्रदेखना तेरे इक इशारे परतोड़ दूँगा मैं रिश्तेनातों को - मासूम नज़रये सर बलन्दी तेरे आशिक़ों की यूँ ही नहींजबीं पे आज भी मैं ख़ाकेदर को देखता हूँ - शकील ग्वालियरीअपने दामन में सितारों को पिरोने वालेरोना कुछ काम भी आया तेरे रोने वाले - कृष्ण कुमार तूर हमको जंगल में किसी का डर नहींआ बसे जब से दरिन्दे शहर में- सादिक़देख किस हाल में अपने को नया करता हूँमैं किसी बीज सा मिट्टी में दबा करता हूँ - सुल्तान अहमदपता सभी को है इस बार फिर से कुछ अन्धेहम आँख वालों को सपने हसीन बेच गए - नूर मोहम्मद नूरवो पेड़ जिसकी छाँव में ठहरा दिया हमेंशाखों पे उनकी एक भी पत्ता हरा नहीं - अनवारे इसलामसियासीवार भी तलवार से कुछ कम नहीं होताकभी कश्मीर जाता है, कभी बंगाल कटता है - मुनव्वर राना
सुख के सपने दिये हैं दौलत नेनींद इसने मगर चुराली है- डॉ. स्वामी श्यामा नन्द सरस्वती रोशनअभी तो सिर्फ्र गुलिस्तां ने आँख खोली हैअभी तो वक्त लगेगा बहार आने में- ना मालूमउनसे पूछो के कभी चेहरे पढ़े हैं उसनेजो किताबों की किया करता है बातें अक्सर- नामालूमइक बार मुज़फ्फ़र को भी तोफ़ीक़ अता होमज़दूर भी जाते हैं अरब तक मेरे मौला - मुज़फ्फ़र हनफ़ीहुस्न उसका मुझे इक समन्दर लगाऔर मैं डूबने के लिए चल पड़ा - अहमदसगीर सिद्दीक़ी, पाकिस्तानहमारे शहर में जब हादिसा हुआ ही नहींतो अपने साये से फिर लोग डर गये कैसे - जफ़र इक़बालगुज़ारो वहीद इसको हंस खेल के तुमबड़ी मुख़्तसर ज़िन्दगानी है लोगों - शकील वहीदमिला है शाख़े समरदार का मिज़ाज हमेंके जिसमें मिलते हैं हम, सर झुका के मिलते हैं- अनवर शमीमआज साहिल पे इन्हें जाके मैं टपका आयाये मेरे अश्क थे कुछ बारेगिराँ से ये दोस्त - सालिम सलीमरेल की सीटी में कैसी हिज्र की तम्हीद थीउसको रुख़सत कर के घर लौटे तो अंदाजा हुआ - परवीन शाकिर
हमारे दिल के सभी राज़ फ़ाश करते हैंझुकी झुकी सी नज़र, होंट कपकपाये हुए - मुम्ताज़ मिर्ज़ा वो बात सारे ज़माने में जिसका ज़िक्र न थावो बात उनको बहुत नाग्वार गुज़री है - फै्रज अहमद फ़ैजजिन्दगी दी है मुझे आग के दरया की तरहपार जाने के लिए मोम की कश्ती दी है- जफ़रगोरखपुरीडुबोकर ख़ून में नुक्तों को अंगारे बनाता हूँफिर अंगारों को पिघलाकर गज़ल पारे बनाता हूँ- मुज़फ्फ़र हनफ़ीहम मुहब्बत में भी तोहीद के काइल हैं फ़राजएक ही शख़्स को महबूब बनाए रखना- अहमद फ़राज़कमाले ज़ब्त को मैं भी तो आज़माऊँगीमैं अपने हाथ से उसकी दुल्हन सजाऊँगी - परवीन शाकिरमेरा दर्द नग़मा बनकर कभी शेर में ढला हैकभीरह गए हैं आँसू मेरी आँख में मचल कर - मुम्ताज़ मिर्ज़ादुनिया चढ़ा रही है मज़ारों पे चादरेंलेकिन खबर है कोई यहाँ बेकफन भी है - मसउदा हयातउनकी याद में बेहते आँसू ख़ुश्क अगर हो जाएँगेसात समन्दर अपनी ख़ाली आँखों में भर लाऊँगा- सादिक़